सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है
ग़म किसे कहते हैं ख़ुशी क्या है
फ़रहत शहज़ाद
तिरा वजूद गवाही है मेरे होने की
मैं अपनी ज़ात से इंकार किस तरह करता
फ़रहत शहज़ाद
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तुझ को खो कर मुझ पर वो भी दिन आए
छुप न सका दुख पीछे कई नक़ाबों के
फ़रहत शहज़ाद
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ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है
इक मकाँ ही नहीं ला-मकाँ ख़्वाब है
फ़रहत शहज़ाद
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ज़िंदगी कट गई मनाते हुए
अब इरादा है रूठ जाने का
फ़रहत शहज़ाद
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