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हयात को तिरी दुश्वार किस तरह करता | शाही शायरी
hayat ko teri dushwar kis tarah karta

ग़ज़ल

हयात को तिरी दुश्वार किस तरह करता

फ़रहत शहज़ाद

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हयात को तिरी दुश्वार किस तरह करता
मैं तुझ से प्यार का इज़हार किस तरह करता

था मेरी सौत पे पहरा ''अना-सिपाही'' का
मैं अपनी हार का इक़रार किस तरह करता

उसे था प्यार से बढ़ कर ख़याल दुनिया का
ये जान कर भी मैं इसरार किस तरह करता

तिरा वजूद गवाही है मेरे होने की
मैं अपनी ज़ात से इंकार किस तरह करता

मुझे ख़बर थी तुझे दुख मिलेंगे बदले में
क़ुबूल फिर मैं तिरा प्यार किस तरह करता

था हम-सफ़र भी सफ़र भी जो मेरी मंज़िल भी
उसी को राह की दीवार किस तरह करता

जो ख़ुद को बेचने बैठा था कौड़ियों के एवज़
मैं उस को अपना ख़रीदार किस तरह करता