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ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है | शाही शायरी
ye zamin KHwab hai aasman KHwab hai

ग़ज़ल

ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है

फ़रहत शहज़ाद

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ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है
इक मकाँ ही नहीं ला-मकाँ ख़्वाब है

जान-लेवा सही जुस्तुजू की थकन
पर सहारा दिए इक जवाँ ख़्वाब है

उस की आँखों में अपनाइयत की चमक
मेरी आँखों का इक बे-अमाँ ख़्वाब है

टूट जाए तो कुछ भी नहीं कोई भी
जिस के दम से हैं दोनों जहाँ ख़्वाब है

चिलचिलाती हुई वक़्त की धूप में
साथ इक साया-ए-मेहरबाँ ख़्वाब है

तू सराब-ए-हसीं मैं फ़रेब-ए-नज़र
प्यार तेरा मिरी जान-ए-जाँ ख़्वाब है

शादी-ए-बे-पनह का सबब है मगर
वज्ह-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ भी मियाँ ख़्वाब है

ज़िंदगी के कठिन जंगलों में मिरा
हर क़दम राहबर पासबाँ ख़्वाब है

जान-ए-'शहज़ाद' तन्हाइयाँ हैं अटल
और बाक़ी का ये कारवाँ ख़्वाब है