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फ़राग़ रोहवी शायरी | शाही शायरी

फ़राग़ रोहवी शेर

20 शेर

भूल गए हर वाक़िआ बस इतना है याद
माल-ओ-ज़र पर थी खड़ी रिश्तों की बुनियाद

फ़राग़ रोहवी




दिमाग़ अहल-ए-मोहब्बत का साथ देता नहीं
उसे कहो कि वो दिल के कहे में आ जाए

फ़राग़ रोहवी




हम से तहज़ीब का दामन नहीं छोड़ा जाता
दश्त-ए-वहशत में भी आदाब लिए फिरते हैं

फ़राग़ रोहवी




हमारे तन पे कोई क़ीमती क़बा न सही
ग़ज़ल को अपनी मगर ख़ुश-लिबास रखते हैं

फ़राग़ रोहवी




इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा 'फ़राग़'
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा

फ़राग़ रोहवी




कैसे अपने प्यार के सपने हों साकार
तेरे मेरे बीच है मज़हब की दीवार

फ़राग़ रोहवी




कौन आता है अयादत के लिए देखें 'फ़राग़'
अपने जी को ज़रा ना-साज़ किए देते हैं

फ़राग़ रोहवी




खुली न मुझ पे भी दीवानगी मिरी बरसों
मिरे जुनून की शोहरत तिरे बयाँ से हुई

फ़राग़ रोहवी




ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है
थोड़ा झूटा मैं भी ठहरा थोड़ा झूटा तू भी है

फ़राग़ रोहवी