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लबों के सामने ख़ाली गिलास रखते हैं | शाही शायरी
labon ke samne Khaali gilass rakhte hain

ग़ज़ल

लबों के सामने ख़ाली गिलास रखते हैं

फ़राग़ रोहवी

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लबों के सामने ख़ाली गिलास रखते हैं
समुंदरों से कहो हम भी प्यास रखते हैं

हर एक गाम पे रौशन हुआ ख़ुदा का गुमाँ
इसी गुमाँ पे यक़ीं की असास रखते हैं

हम अपने आप से पाते हैं कोसों दूर उसे
वही ख़ुदा कि जिसे आस-पास रखते हैं

चढ़ा के दार-ए-क़नाअत पे हर तमन्ना को
जो एक दिल है उसे भी उदास रखते हैं

ज़ियाँ-पसंद हमारा मिज़ाज है वर्ना
निगाह हम भी ज़माना-शनास रखते हैं

हमारे तन पे कोई क़ीमती क़बा न सही
ग़ज़ल को अपनी मगर ख़ुश-लिबास रखते हैं

चलो कि राह-ए-तमन्ना में चल के हम भी 'फ़राग़'
ज़मीन-ए-दिल पे ग़मों की असास रखते हैं