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भारत भूषण पन्त शायरी | शाही शायरी

भारत भूषण पन्त शेर

37 शेर

हम वो सहरा के मुसाफ़िर हैं अभी तक जिन की
प्यास बुझती है सराबों की कहानी सुन कर

भारत भूषण पन्त




आँखों में एक बार उभरने की देर थी
फिर आँसुओं ने आप ही रस्ते बना लिए

भारत भूषण पन्त




हमारी बात किसी की समझ में क्यूँ आती
ख़ुद अपनी बात को कितना समझ रहे हैं हम

भारत भूषण पन्त




हर घड़ी तेरा तसव्वुर हर नफ़स तेरा ख़याल
इस तरह तो और भी तेरी कमी बढ़ जाएगी

भारत भूषण पन्त




हर तरफ़ थी ख़ामोशी और ऐसी ख़ामोशी
रात अपने साए से हम भी डर के रोए थे

भारत भूषण पन्त




इस तरह तो और भी दीवानगी बढ़ जाएगी
पागलों को पागलों से दूर रहना चाहिए

भारत भूषण पन्त




इतना तो समझते थे हम भी उस की मजबूरी
इंतिज़ार था लेकिन दर खुला नहीं रक्खा

भारत भूषण पन्त




इतनी सी बात रात पता भी नहीं लगी
कब बुझ गए चराग़ हवा भी नहीं लगी

भारत भूषण पन्त




जाने कितने लोग शामिल थे मिरी तख़्लीक़ में
मैं तो बस अल्फ़ाज़ में था शाएरी में कौन था

भारत भूषण पन्त