पता मिलता नहीं उस बे-निशाँ का
लिए फिरता है क़ासिद जा-ब-जा ख़त
बहराम जी
रिश्ता-ए-उल्फ़त रग-ए-जाँ में बुतों का पड़ गया
अब ब-ज़ाहिर शग़्ल है ज़ुन्नार का फ़े'अल-ए-अबस
बहराम जी
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यार को हम ने बरमला देखा
आश्कारा कहीं छुपा देखा
बहराम जी
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ज़ाहिदा काबे को जाता है तो कर याद-ए-ख़ुदा
फिर जहाज़ों में ख़याल-ए-ना-ख़ुदा करता है क्यूँ
बहराम जी
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ज़ाहिरी वाज़ से है क्या हासिल
अपने बातिन को साफ़ कर वाइज़
बहराम जी
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