यार को हम ने बरमला देखा
आश्कारा कहीं छुपा देखा
लन-तरानी कहा खुला देखा
कुन्तो-कनरन कहा छुपा देखा
कहीं ख़ालिक़ हुआ कहीं मख़्लूक़
कहीं बंदा कहीं ख़ुदा देखा
बाग़ में है वो हर जगह मौजूद
कहीं ग़ुंचा कहीं सबा देखा
कहीं आबिद है वो कहीं माबूद
गह मआबिद में जब्हा-सा देखा
कहीं लैला बना कहीं मजनूँ
कहीं महबूब-ए-ख़ुश-अदा देखा
कहीं आशिक़ बना कहीं माशूक़
कहीं इन दोनों से जला देखा
कहीं ख़ुर्शीद में मुनव्वर है
कहीं महताब में ज़िया देखा
नज़र आया वो मय-कदे में मस्त
कहीं मस्जिद में पारसा देखा
कहीं ना-आश्ना है आशिक़ से
कहीं आलम से आश्ना देखा
कहीं बनता है आशिक़-ए-बेताब
कहीं ख़ूबाँ का पेशवा देखा
कहीं आशिक़-सिफ़त दिया है दिल
कहीं माशूक़-ए-दिल-रुबा देखा
कहीं बुलबुल बना कहीं कुमरी
गह गुल ओ सर्व-ए-ख़ुशनुमा देखा
गह मुनज़्ज़ह है यार वहदत में
गाह कसरत में जा-ब-जा देखा
गाह मुमकिन है गाह है ला-शय
यार का माजरा नया देखा
जल्वा उस का है हर तरफ़ रौशन
अपने जल्वे पे ख़ुद फ़िदा देखा
अक़्ल हैरान हो गई 'बहराम'
ये तमाशा जो यार का देखा
ग़ज़ल
यार को हम ने बरमला देखा
बहराम जी