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रखा सर पर जो आया यार का ख़त | शाही शायरी
rakha sar par jo aaya yar ka KHat

ग़ज़ल

रखा सर पर जो आया यार का ख़त

बहराम जी

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रखा सर पर जो आया यार का ख़त
गया सब दर्द-ए-सर किया था दवा ख़त

दिया ख़त और हूँ क़ासिद के पीछे
हुआ तासीर में क्या कहरुबा ख़त

वहीं क़ासिद के मुँह पर फेंक मारा
दिया क़ासिद ने जब जा कर मिरा ख़त

है लाज़िम हाल ख़ैरिय्यत का लिखना
कभी तो भेज ओ ना-आश्ना ख़त

रहा मम्नून काग़ज़-साज़ का मैं
सुना देगा उसे सब माजरा ख़त

पता मिलता नहीं उस बे-निशाँ का
लिए फिरता है क़ासिद जा-ब-जा ख़त

रही हसरत ये सारी उम्र 'बहराम'
न मुझ को यार ने हरगिज़ लिखा ख़त