न हाथ सूख के झड़ते हैं जिस्म से अपने
न शाख़ कोई समर-बार अपनी होती है
अज़लान शाह
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तवील उम्र की ढेरों दुआएँ भेजी हैं
मिरे चराग़ को पानी से भरने वालों ने
अज़लान शाह
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तुम मोहब्बत का उसे नाम भी दे लो लेकिन
ये तो क़िस्सा किसी हारी हुई तक़दीर का है
अज़लान शाह
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तू आ गया है तो अब याद भी नहीं मुझ को
ये इश्क़ मेरा बुरा हाल करने वाला था
अज़लान शाह
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तू बात नहीं सुनता यही हल है फिर इस का
झगड़े के लिए वक़्त निकालें कोई हम भी
अज़लान शाह
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ये ख़ज़ाने का कोई साँप बना होता है
आदमी इश्क़ में दुनिया से बुरा होता है
अज़लान शाह
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