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समझ के रस्ता इधर से गुज़रने वालों ने | शाही शायरी
samajh ke rasta idhar se guzarne walon ne

ग़ज़ल

समझ के रस्ता इधर से गुज़रने वालों ने

अज़लान शाह

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समझ के रस्ता इधर से गुज़रने वालों ने
कहीं का छोड़ा न दिल से उतरने वालों ने

बने-बनाए हुए रास्तों पे चलते हुए
ख़ुदा बनाए ख़ुदाई से डरने वालों ने

हज़ार छेद किए झोलियों में अपनों की
तुम्हारे नाम पे ख़ैरात करने वालों ने

तवील उम्र की ढेरों दुआएँ भेजी हैं
मिरे चराग़ को पानी से भरने वालों ने

हमारी आँख में इक बूँद भी नहीं छोड़ी
मिसाल-ए-अब्र फ़लक पर उभरने वालों ने

ये किस तरह के अजब वाहिमों में डाल दिया
शराब ओ शहद की तस्दीक़ करने वालों ने

ज़बान-बंदी पे मजबूर हो गई दुनिया
वो खेल खेला है हैरत से मरने वालों ने

चराग़-ए-राह को ग़ारत-गरी सिखाई है
हवा-ए-शहर पे इल्ज़ाम धरने वालों ने