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दुनिया के लिए ज़हर न खालें कोई हम भी | शाही शायरी
duniya ke liye zahr na khaalen koi hum bhi

ग़ज़ल

दुनिया के लिए ज़हर न खालें कोई हम भी

अज़लान शाह

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दुनिया के लिए ज़हर न खालें कोई हम भी
इस बात पे फिर शर्त लगा लें कोई हम भी

बहती हुई गंगा तिरे पानी में नहा कर
अपने लिए नेकी न कमा लें कोई हम भी

लगता है यही वैसे गुज़ारा नहीं होगा
झूटी ही सही बात बना लें कोई हम भी

हर साल मनाएगी बड़ी धूम से दुनिया
इस इश्क़ को त्यौहार बना लें कोई हम भी

दिल में लिए फिरते हैं बस इतनी सी ये ख़्वाहिश
बालों में तिरे फूल लगा लें कोई हम भी

तू बात नहीं सुनता यही हल है फिर इस का
झगड़े के लिए वक़्त निकालें कोई हम भी