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कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है | शाही शायरी
kaman na tir na talwar apni hoti hai

ग़ज़ल

कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है

अज़लान शाह

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कमाँ न तीर न तलवार अपनी होती है
मगर ये दुनिया कि हर बार अपनी होती है

यही सिखाया है हम को हमारे लोगों ने
जो जंग जीते वो तलवार अपनी होती है

ज़बान चिड़ियों की दुनिया समझ नहीं सकती
क़ुबूल-ओ-रद की ये तकरार अपनी होती है

न हाथ सूख के झड़ते हैं जिस्म से अपने
न शाख़ कोई समर-बार अपनी होती है

जो हाथ आए उसे रौंद कर चला जाए
गुज़रते वक़्त की रफ़्तार अपनी होती है

जगह जगह से निवाले उठाने पड़ते हैं
तलाश-ए-रिज़्क़ की बेगार अपनी होती है