कुछ काम आ सकीं न यहाँ बे-गुनाहियाँ
हम पर लगा हुआ था वो इल्ज़ाम उम्र-भर
अज़ीज़ तमन्नाई
मिल ही जाएगी कभी मंज़िल-ए-मक़्सूद-ए-सहर
शर्त ये है कि सफ़र करते रहो शाम के साथ
अज़ीज़ तमन्नाई
थपकियाँ देते रहे ठंडी हवा के झोंके
इस क़दर जल उठे जज़्बात कि हम सो न सके
अज़ीज़ तमन्नाई
उन को है दा'वा-ए-मसीहाई
जो नहीं जानते शिफ़ा क्या है
अज़ीज़ तमन्नाई
वहीं बहार-ब-कफ़ क़ाफ़िले लपक के चले
जहाँ जहाँ तिरे नक़्श-ए-क़दम उभरते रहे
अज़ीज़ तमन्नाई
वो शय कहाँ है पिन्हाँ ऐ मौज-ए-आब-ए-हैवाँ
जो वज्ह-ए-सर-ख़ुशी थी बरसों की तिश्नगी में
अज़ीज़ तमन्नाई
ये ग़म नहीं कि मुझ को जागना पड़ा है उम्र भर
ये रंज है कि मेरे सारे ख़्वाब कोई ले गया
अज़ीज़ तमन्नाई