EN اردو
दहर में इक तिरे सिवा क्या है | शाही शायरी
dahr mein ek tere siwa kya hai

ग़ज़ल

दहर में इक तिरे सिवा क्या है

अज़ीज़ तमन्नाई

;

दहर में इक तिरे सिवा क्या है
तू नहीं है तो फिर भला क्या है

सिला-ए-ज़ौक़ मय-कशी मा'लूम
ज़र्फ़ क्या शय है हौसला क्या है

हाशिए अपने मत्न है उन का
मोहतसिब फिर सज़ा जज़ा क्या है

पूछता हूँ हर एक साए से
चाँदनी का अता-पता क्या है

उन को है दा'वा-ए-मसीहाई
जो नहीं जानते शिफ़ा क्या है

किस लिए गर्दिश-ए-मुदाम में हैं
आसमानों को ये हुआ क्या है

ले उड़ेगी बुलंद-परवाज़ी
दोस्तो साया-ए-हुमा क्या है

इतनी इफ़रात ऐसी महरूमी
देने वाले मोआ'मला क्या है

सैल-ए-शाम-ओ-सहर में बहते हैं
क्या ख़बर ज़ीस्त क्या क़ज़ा क्या है

हम ही चुप हो गए 'तमन्नाई'
दे रहा है कोई सदा क्या है