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पाते हैं कुछ कमी सी तस्वीर-ए-ज़िंदगी में | शाही शायरी
pate hain kuchh kami si taswir-e-zindagi mein

ग़ज़ल

पाते हैं कुछ कमी सी तस्वीर-ए-ज़िंदगी में

अज़ीज़ तमन्नाई

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पाते हैं कुछ कमी सी तस्वीर-ए-ज़िंदगी में
क्या नक़्श छोड़ आए हम दश्त-बे-खु़दी में

ज़ंजीर-ए-आगही से शमशीर-ए-आगही तक
क्या क्या मक़ाम आए दिल की सिपह-गरी में

जी देखने को तरसे देखूँ तो किस नज़र से
तूफ़ान-ए-ख़ीरगी है जल्वों की रौशनी में

हस्ती बजाए ख़ुद है इक कार-गाह-ए-हस्ती
हम मस्त-बंदगी में वो बंदा-परवरी में

ढूँडे से भी न पाई सदियों की जुस्तुजू ने
शामिल थी जो तजल्ली तरतीब-ए-उन्सुरी में

वो शय कहाँ है पिन्हाँ ऐ मौज-ए-आब-ए-हैवाँ
जो वज्ह-ए-सर-ख़ुशी थी बरसों की तिश्नगी में