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करते रहे तआ'क़ुब-ए-अय्याम उम्र-भर | शाही शायरी
karte rahe taaqub-e-ayyam umr-bhar

ग़ज़ल

करते रहे तआ'क़ुब-ए-अय्याम उम्र-भर

अज़ीज़ तमन्नाई

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करते रहे तआ'क़ुब-ए-अय्याम उम्र-भर
उड़ता रहा ग़ुबार बहर-गाम उम्र-भर

हसरत से देखते रहे हर ख़ुश-ख़िराम को
हम सूरत-ए-तुयूर तह-ए-दाम उम्र-भर

हर-चंद तल्ख़-काम था हर जुरआ-ए-हयात
मुँह से लगाए बैठे रहे जाम उम्र-भर

हर शाख़-ए-नौ-बहार थी आलूदा-ए-ग़ुबार
ढूँडा किए नशेमन-ए-आराम उम्र-भर

कुछ काम आ सकीं न यहाँ बे-गुनाहियाँ
हम पर लगा हुआ था वो इल्ज़ाम उम्र-भर

देता रहा सदाएँ हमें दूर दूर तक
कोई छुपा हुआ पस-ए-अस्नाम उम्र-भर

बा-वस्फ़-ए-एहतियात 'तमन्नाई' हम रहे
पा-बस्ता-ए-सलासिल-ए-औहाम उम्र-भर