कुछ आप का ग़म कुछ ग़म-ए-जाँ कुछ ग़म-ए-दुनिया
दामन में मिरे फूल भी हैं ख़ार भी ख़स भी
अज़ीम मुर्तज़ा
कुछ नक़्श तिरी याद के बाक़ी हैं अभी तक
दिल बे-सर-ओ-सामाँ सही वीराँ तो नहीं है
अज़ीम मुर्तज़ा
क्या क्या फ़राग़तें थीं मयस्सर हयात को
वो दिन भी थे कि तेरे सिवा कोई ग़म न था
अज़ीम मुर्तज़ा
तन्हाई का सन्नाटा और आती जाती रातें
तेरी याद न और कोई ग़म फिर भी नींद न आए
अज़ीम मुर्तज़ा
तुझ से मिल के भी तेरा इंतिज़ार रहता है
सुब्ह रू-ए-ख़ंदाँ से शाम ज़ुल्फ़-ए-बरहम तक
अज़ीम मुर्तज़ा
टूटा तो अज़ीज़ और हुआ अहल-ए-वफ़ा को
दिल भी कहीं उस शोख़ का पैमाँ तो नहीं है
अज़ीम मुर्तज़ा
वही यकसानियत-ए-शाम-ओ-सहर है कि जो थी
ज़िंदगी दस्त-ब-दिल ख़ाक-बसर है कि जो थी
अज़ीम मुर्तज़ा