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महरूमी के दुख और तन्हाई के रंज उठाए | शाही शायरी
mahrumi ke dukh aur tanhai ke ranj uThae

ग़ज़ल

महरूमी के दुख और तन्हाई के रंज उठाए

अज़ीम मुर्तज़ा

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महरूमी के दुख और तन्हाई के रंज उठाए
लेकिन हम को आज भी झूटा प्यार न करना आए

सैल-ए-ग़म-ए-दुनिया ने दिल से क्या क्या नक़्श मिटाए
हिज्र की रातों में अब तेरी शक्ल भी याद न आए

तन्हाई का सन्नाटा और आती जाती रातें
तेरी याद न और कोई ग़म फिर भी नींद न आए

तेरे मा'सूमाना प्यार की दौलत पा कर हम ने
अक्सर नाज़ किया है लेकिन कभी कभी पछताए

प्यासी कलियाँ पानी के क़तरे क़तरे को तरसें
और करम का बादल दरियाओं पे बरसता जाए