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कुछ नक़्श तिरी याद के बाक़ी हैं अभी तक | शाही शायरी
kuchh naqsh teri yaad ke baqi hain abhi tak

ग़ज़ल

कुछ नक़्श तिरी याद के बाक़ी हैं अभी तक

अज़ीम मुर्तज़ा

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कुछ नक़्श तिरी याद के बाक़ी हैं अभी तक
दिल बे-सर-ओ-सामाँ सही वीराँ तो नहीं है

हम दर्द के मारे ही गिराँ-जाँ हैं वगर्ना
जीना तिरी फ़ुर्क़त में कुछ आसाँ तो नहीं है

टूटा तो अज़ीज़ और हुआ अहल-ए-वफ़ा को
दिल भी कहीं उस शोख़ का पैमाँ तो नहीं है