फेंका था किस ने संग-ए-हवस रात ख़्वाब में
फिर ढूँढती है नींद उसी पिछले पहर को
असलम आज़ाद
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रास्ता सुनसान था तो मुड़ के देखा क्यूँ नहीं
मुझ को तन्हा देख कर उस ने पुकारा क्यूँ नहीं
असलम आज़ाद
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सिलसिला रोने का सदियों से चला आता है
कोई आँसू मिरी पलकों पे ठहरता ही नहीं
असलम आज़ाद
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