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असलम आज़ाद शायरी | शाही शायरी

असलम आज़ाद शेर

12 शेर

फेंका था किस ने संग-ए-हवस रात ख़्वाब में
फिर ढूँढती है नींद उसी पिछले पहर को

असलम आज़ाद




रास्ता सुनसान था तो मुड़ के देखा क्यूँ नहीं
मुझ को तन्हा देख कर उस ने पुकारा क्यूँ नहीं

असलम आज़ाद




सिलसिला रोने का सदियों से चला आता है
कोई आँसू मिरी पलकों पे ठहरता ही नहीं

असलम आज़ाद