EN اردو
रास्ता सुनसान था तो मुड़ के देखा क्यूँ नहीं | शाही शायरी
rasta sunsan tha to muD ke dekha kyun nahin

ग़ज़ल

रास्ता सुनसान था तो मुड़ के देखा क्यूँ नहीं

असलम आज़ाद

;

रास्ता सुनसान था तो मुड़ के देखा क्यूँ नहीं
मुझ को तन्हा देख कर उस ने पुकारा क्यूँ नहीं

धूप की आग़ोश में लेटा रहा मैं उम्र भर
मेहरबाँ था वो तो मिस्ल-ए-अब्र आया क्यूँ नहीं

एक पंछी देर तक साहिल पे मंडलाता रहा
मुज़्तरिब था प्यास से लेकिन वो उतरा क्यूँ नहीं

क़ुर्ब की क़ौस-ए-क़ुज़ह कमरे में बिखरी थी मगर
रात भर रंग-ए-तमन्ना फिर भी निखरा क्यूँ नहीं

मुझ को पत्थर में बदलते चाहे ख़ुद बन जाते वो मोम
ख़्वाहिश-ए-तिफ़्ल-ए-तमन्ना को जगाया क्यूँ नहीं

उस को तन्हा पा के 'असलम' रात अपने रूम में
क़तरा-ए-ख़ून-ए-हवस आँखों में आया क्यूँ नहीं