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असग़र गोंडवी शायरी | शाही शायरी

असग़र गोंडवी शेर

54 शेर

हर इक जगह तिरी बर्क़-ए-निगाह दौड़ गई
ग़रज़ ये है कि किसी चीज़ को क़रार न हो

असग़र गोंडवी




इक अदा इक हिजाब इक शोख़ी
नीची नज़रों में क्या नहीं होता

all, shyness, mischief and coquetry
in her lowered glance, are there to see

असग़र गोंडवी




इश्क़ की बेताबियों पर हुस्न को रहम आ गया
जब निगाह-ए-शौक़ तड़पी पर्दा-ए-महमिल न था

असग़र गोंडवी




जीना भी आ गया मुझे मरना भी आ गया
पहचानने लगा हूँ तुम्हारी नज़र को मैं

असग़र गोंडवी




कुछ मिलते हैं अब पुख़्तगी-ए-इश्क़ के आसार
नालों में रसाई है न आहों में असर है

असग़र गोंडवी




क्या क्या हैं दर्द-ए-इश्क़ की फ़ित्ना-तराज़ियाँ
हम इल्तिफ़ात-ए-ख़ास से भी बद-गुमाँ रहे

असग़र गोंडवी




क्या मस्तियाँ चमन में हैं जोश-ए-बहार से
हर शाख़-ए-गुल है हाथ में साग़र लिए हुए

असग़र गोंडवी




लज़्ज़त-ए-सज्दा-हा-ए-शौक़ न पूछ
हाए वो इत्तिसाल-ए-नाज़-ओ-नियाज़

असग़र गोंडवी




लोग मरते भी हैं जीते भी हैं बेताब भी हैं
कौन सा सेहर तिरी चश्म-ए-इनायत में नहीं

असग़र गोंडवी