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जीने का न कुछ होश न मरने की ख़बर है | शाही शायरी
jine ka na kuchh hosh na marne ki KHabar hai

ग़ज़ल

जीने का न कुछ होश न मरने की ख़बर है

असग़र गोंडवी

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जीने का न कुछ होश न मरने की ख़बर है
ऐ शोबदा-पर्दाज़ ये क्या तर्ज़-ए-नज़र है

सीने में यहाँ दिल है न पहलू में जिगर है
अब कौन है जो तिश्ना-ए-पैकान-ए-नज़र है

है ताबिश-ए-अनवार से आलम तह-ओ-बाला
जल्वा वो अभी तक तह-ए-दामान-ए-नज़र है

कुछ मिलते हैं अब पुख़्तगी-ए-इश्क़ के आसार
नालों में रसाई है न आहों में असर है

ज़र्रों को यहाँ चैन न अज्राम-ए-फ़लक को
ये क़ाफ़िला बे-ताब कहाँ गर्म-ए-सफ़र है

ख़ामोश ये हैरत-कदा-ए-दहर है 'असग़र'
जो कुछ नज़र आता है वो सब तर्ज़-ए-नज़र है