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कौन था उस के हवा-ख़्वाहों में जो शामिल न था | शाही शायरी
kaun tha uske hawa-KHwahon mein jo shamil na tha

ग़ज़ल

कौन था उस के हवा-ख़्वाहों में जो शामिल न था

असग़र गोंडवी

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कौन था उस के हवा-ख़्वाहों में जो शामिल न था
अब हुआ मालूम मुझ को दिल भी मेरा दिल न था

इश्क़ की बेताबियों पर हुस्न को रहम आ गया
जब निगाह-ए-शौक़ तड़पी पर्दा-ए-महमिल न था

थीं निगाह-ए-शौक़ की रंगीनियाँ छाई हुई
पर्दा-ए-महमिल उठा तो साहिब-ए-महमिल न था

क़हर है थोड़ी सी भी ग़फ़लत तरीक़-ए-इश्क़ में
आँख झपकी क़ैस की और सामने महमिल न था