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असग़र गोंडवी शायरी | शाही शायरी

असग़र गोंडवी शेर

54 शेर

वो नग़्मा बुलबुल-ए-रंगीं-नवा इक बार हो जाए
कली की आँख खुल जाए चमन बेदार हो जाए

असग़र गोंडवी




वो शोरिशें निज़ाम-ए-जहाँ जिन के दम से है
जब मुख़्तसर किया उन्हें इंसाँ बना दिया

असग़र गोंडवी




यहाँ कोताही-ए-ज़ौक़-ए-अमल है ख़ुद गिरफ़्तारी
जहाँ बाज़ू सिमटते हैं वहीं सय्याद होता है

असग़र गोंडवी




यहाँ कोताही-ए-ज़ौक़-ए-अमल है ख़ुद गिरफ़्तारी
जहाँ बाज़ू सिमटते हैं वहीं सय्याद होता है

असग़र गोंडवी




ये आस्तान-ए-यार है सेहन-ए-हरम नहीं
जब रख दिया है सर तो उठाना न चाहिए

असग़र गोंडवी




ये भी फ़रेब से हैं कुछ दर्द आशिक़ी के
हम मर के क्या करेंगे क्या कर लिया है जी के

असग़र गोंडवी




यूँ मुस्कुराए जान सी कलियों में पड़ गई
यूँ लब-कुशा हुए कि गुलिस्ताँ बना दिया

असग़र गोंडवी




ज़ाहिद ने मिरा हासिल-ए-ईमाँ नहीं देखा
रुख़ पर तिरी ज़ुल्फ़ों को परेशाँ नहीं देखा

the priest has seen my piety, he hasn't seen your grace
he has not seen your tresses strewn across your face

असग़र गोंडवी




ज़ुल्फ़ थी जो बिखर गई रुख़ था कि जो निखर गया
हाए वो शाम अब कहाँ हाए वो अब सहर कहाँ

असग़र गोंडवी