इतना तो बता जाओ ख़फ़ा होने से पहले
वो क्या करें जो तुम से ख़फ़ा हो नहीं सकते
असद भोपाली
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जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए
बार-हा दिल ने ये महसूस किया तुम आए
असद भोपाली
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मैं अब तेरे सिवा किस को पुकारूँ
मुक़द्दर सो गया ग़म जागता है
असद भोपाली
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न आया ग़म भी मोहब्बत में साज़गार मुझे
वो ख़ुद तड़प गए देखा जो बे-क़रार मुझे
असद भोपाली
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न बज़्म अपनी न अपना साक़ी न शीशा अपना न जाम अपना
अगर यही है निज़ाम-ए-हस्ती तो ज़िंदगी को सलाम अपना
असद भोपाली
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ये आँसू ढूँडता है तेरा दामन
मुसाफ़िर अपनी मंज़िल जानता है
असद भोपाली
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