EN اردو
शाख़ से फूल से क्या उस का पता पूछती है | शाही शायरी
shaKH se phul se kya us ka pata puchhti hai

ग़ज़ल

शाख़ से फूल से क्या उस का पता पूछती है

असअ'द बदायुनी

;

शाख़ से फूल से क्या उस का पता पूछती है
या फिर इस दश्त में कुछ और हवा पूछती है

मैं तो ज़ख़्मों को ख़ुदा से भी छुपाना चाहूँ
किस लिए हाल मिरा ख़ल्क़-ए-ख़ुदा पूछती है

चश्म-ए-इंकार में इक़रार भी हो सकता था
छेड़ने को मुझे फिर मेरी अना पूछती है

तेज़ आँधी को न फ़ुर्सत है न ये शौक़-ए-फ़ुज़ूल
हाल ग़ुंचों का मोहब्बत से सबा पूछती है

किसी सहरा से गुज़रता है कोई नाक़ा-सवार
और मिज़ाज उस का हवा सब से जुदा पूछती है