वो एक नाम जो दरिया भी है किनारा भी
रहा है उस से बहुत राब्ता हमारा भी
चमन वही कि जहाँ पर लबों के फूल खिलें
बदन वही कि जहाँ रात हो गवारा भी
हमें भी लम्हा-ए-रुख़्सत से हौल आता है
जुदा हुआ है कोई मेहरबाँ हमारा भी
अलामत-ए-शजर-ए-सायादार भी वो जिस्म
ख़राबी-ए-दिल-ओ-दीदा का इस्तिआरा भी
उफ़ुक़ थकन की रिदा में लिपटता जाता है
सो हम भी चुप हैं और इस शाम का सितारा भी
ग़ज़ल
वो एक नाम जो दरिया भी है किनारा भी
असअ'द बदायुनी