मशहूर भी हैं बदनाम भी हैं ख़ुशियों के नए पैग़ाम भी हैं
कुछ ग़म के बड़े इनआ'म भी हैं पढ़िए तो कहानी काम की है
अंजुम बाराबंकवी
मेराज-ए-अक़ीदत है कि ता'वीज़ की सूरत
बाज़ू पे कोई ख़ाक-ए-वतन बाँधे हुए है
अंजुम बाराबंकवी
मुझे सोने की क़ीमत मत बताओ
मैं मिट्टी हूँ मिरी अज़्मत बहुत है
अंजुम बाराबंकवी
शोहरत की रौशनी हो कि नफ़रत की तीरगी
क्या क्या उसे दिया है ख़ुदा ने पता करो
अंजुम बाराबंकवी
तुझे तो कितनी बहारें सलाम भेजेंगी
अभी ये फूल सा चेहरा ज़रा सँभाल के रख
अंजुम बाराबंकवी
ये बादशाह नहीं है फ़क़ीर है सूरज
हमेशा रात की झोली से दिन निकालता है
अंजुम बाराबंकवी
ज़रा महफ़ूज़ रस्तों से गुज़रना
तुम्हारी शहर में शोहरत बहुत है
अंजुम बाराबंकवी