ज़ंजीर तो पैरों से थकन बाँधे हुए है
दीवाना मगर सर से कफ़न बाँधे हुए है
ख़ुश्बू के बिखरने में ज़रा देर लगेगी
मौसम अभी फूलों के बदन बाँधे हुए है
दस्तार में ताऊस के पर बाँधने वाला
गर्दन में मसाइल की रसन बाँधे हुए है
शायद किसी मज्ज़ूब-ए-मोहब्बत को ख़बर हो
किस सेहर से धरती को गगन बाँधे हुए है
मेराज-ए-अक़ीदत है कि ता'वीज़ की सूरत
बाज़ू पे कोई ख़ाक-ए-वतन बाँधे हुए है
सूरज ने अँधेरों की नज़र बाँध के पूछा
अब कौन उजालों का सुख़न बाँधे हुए है
ग़ज़ल
ज़ंजीर तो पैरों से थकन बाँधे हुए है
अंजुम बाराबंकवी