आँधियों का काम चलना है ग़रज़ इस से नहीं
पेड़ पर पत्ता रहेगा या जुदा हो जाएगा
अली अहमद जलीली
बन रहे हैं सतह-ए-दिल पर दाएरे
तुम ने तो पत्थर कोई फेंका नहीं
अली अहमद जलीली
दूर तक दिल में दिखाई नहीं देता कोई
ऐसे वीराने में अब किस को सदा दी जाए
अली अहमद जलीली
एक तहरीर जो उस के हाथों की थी
बात वो मुझ से करती रही रात भर
अली अहमद जलीली
ग़म से मंसूब करूँ दर्द का रिश्ता दे दूँ
ज़िंदगी आ तुझे जीने का सलीक़ा दे दूँ
अली अहमद जलीली
हम ने देखा है ज़माने का बदलना लेकिन
उन के बदले हुए तेवर नहीं देखे जाते
अली अहमद जलीली
काटी है ग़म की रात बड़े एहतिराम से
अक्सर बुझा दिया है चराग़ों को शाम से
अली अहमद जलीली
किनारों से मुझे ऐ ना-ख़ुदाओ दूर ही रक्खो
वहाँ ले कर चलो तूफ़ाँ जहाँ से उठने वाला है
अली अहमद जलीली
क्या इसी वास्ते सींचा था लहू से अपने
जब सँवर जाए चमन आग लगा दी जाए
अली अहमद जलीली