EN اردو
अब छलकते हुए साग़र नहीं देखे जाते | शाही शायरी
ab chhalakte hue saghar nahin dekhe jate

ग़ज़ल

अब छलकते हुए साग़र नहीं देखे जाते

अली अहमद जलीली

;

अब छलकते हुए साग़र नहीं देखे जाते
तौबा के ब'अद ये मंज़र नहीं देखे जाते

मस्त कर के मुझे औरों को लगा मुँह साक़ी
ये करम होश में रह कर नहीं देखे जाते

साथ हर एक को इस राह में चलना होगा
इश्क़ में रहज़न ओ रहबर नहीं देखे जाते

हम ने देखा है ज़माने का बदलना लेकिन
उन के बदले हुए तेवर नहीं देखे जाते