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अजमल सिद्दीक़ी शायरी | शाही शायरी

अजमल सिद्दीक़ी शेर

11 शेर

आस पे तेरी बिखरा देता हूँ कमरे की सब चीज़ें
आस बिखरने पर सब चीज़ें ख़ुद ही उठा के रखता हूँ

अजमल सिद्दीक़ी




अलग अलग तासीरें इन की, अश्कों के जो धारे हैं
इश्क़ में टपकें तो हैं मोती, नफ़रत में अंगारे हैं

अजमल सिद्दीक़ी




बाज़ार में इक चीज़ नहिं काम की मेरे
ये शहर मिरी जेब का रखता है भरम ख़ूब

अजमल सिद्दीक़ी




बोल पड़ता तो मिरी बात मिरी ही रहती
ख़ामुशी ने हैं दिए सब को फ़साने क्या क्या

अजमल सिद्दीक़ी




दिल तो सादा है तेरी हर बात को सच्चा मानता है
अक़्ल ने बातें करते तेरा आँख चुराना देखा है

अजमल सिद्दीक़ी




हर एक सुब्ह वज़ू करती हैं मिरी आँखें
कि शायद आज तो आ जाए वो हबीब नज़र

अजमल सिद्दीक़ी




जिस दिन से गया वो जान-ए-ग़ज़ल हर मिसरे की सूरत बिगड़ी
हर लफ़्ज़ परेशाँ दिखता है, इस दर्जा वरक़ नमनाक हुआ

अजमल सिद्दीक़ी




कभी ख़ौफ़ था तिरे हिज्र का कभी आरज़ू के ज़वाल का
रहा हिज्र-ओ-वस्ल के दरमियाँ तुझे खो सका न मैं पा सका

अजमल सिद्दीक़ी




क्या क्या न पढ़ा इस मकतब में, कितने ही हुनर सीखे हैं यहाँ
इज़हार कभी आँखों से किया कभी हद से सिवा बेबाक हुआ

अजमल सिद्दीक़ी