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दुखे दिलों पे जो पड़ जाए वो तबीब नज़र | शाही शायरी
dukhe dilon pe jo paD jae wo tabib nazar

ग़ज़ल

दुखे दिलों पे जो पड़ जाए वो तबीब नज़र

अजमल सिद्दीक़ी

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दुखे दिलों पे जो पड़ जाए वो तबीब नज़र
तो बाग़-ए-दिल में भी आ जाएँ अंदलीब नज़र

हर एक सुब्ह वज़ू करती हैं मिरी आँखें
कि शायद आज तो आ जाए वो हबीब नज़र

इसी तरह से रह-ए-यार को तके जाना
हद-ए-नज़र को गिरा देगी अन-क़रीब नज़र

तू इंतिज़ार से छुट कर है ख़ुश मगर मुझ को
घड़ी जुदाई की आने लगी क़रीब नज़र

बुझा दो शम-ए-मोहब्बत जला दो गुलशन-ए-इश्क़
डरा सकेगी न आशिक़ को ये मुहीब नज़र

जमाल-ओ-हुस्न के क़ाएल हैं उस के सब 'अजमल'
बस एक तुम ही यहाँ रखते हो अजीब नज़र