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ख़त जो तेरे नाम लिखा, तकिए के नीचे रखता हूँ | शाही शायरी
KHat jo tere nam likha, takiye ke niche rakhta hun

ग़ज़ल

ख़त जो तेरे नाम लिखा, तकिए के नीचे रखता हूँ

अजमल सिद्दीक़ी

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ख़त जो तेरे नाम लिखा, तकिए के नीचे रखता हूँ
जाने किस उम्मीद पे ये तावीज़ दबा के रखता हूँ

ताकि इक इक लफ़्ज़ मिरे लहजे में तुझ से बात करे
ख़त के हर हर लफ़्ज़ को ख़त पर ख़ूब पढ़ा के रखता हूँ

आस पे तेरी बिखरा देता हूँ कमरे की सब चीज़ें
आस बिखरने पर सब चीज़ें ख़ुद ही उठा के रखता हूँ

एक ज़रा सा दर्द मिला और काग़ज़ काले कर डाले
एक ज़रा से हिज्र पे इक हंगामा मचा के रखता हूँ

अम्बर, मुश्कीं, रूह-ए-बहाराँ जान-फ़ज़ा ओ मौज-ए-बहिश्त
इक तेरी निस्बत से क्या क्या नाम सबा के रखता हूँ