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सुबह शायरी | शाही शायरी

सुबह

7 शेर

रोने वाले हुए चुप हिज्र की दुनिया बदली
शम्अ बे-नूर हुई सुब्ह का तारा निकला

फ़िराक़ गोरखपुरी




रौशन-दान से धूप का टुकड़ा आ कर मेरे पास गिरा
और फिर सूरज ने कोशिश की मुझ से आँख मिलाने की

हुमैरा रहमान




रात आ कर गुज़र भी जाती है
इक हमारी सहर नहीं होती

इब्न-ए-इंशा




सुब्ह सवेरे रन पड़ना है और घमसान का रन
रातों रात चला जाए जिस को जाना है

इफ़्तिख़ार आरिफ़




अब आ गई है सहर अपना घर सँभालने को
चलूँ कि जागा हुआ रात भर का मैं भी हूँ

इरफ़ान सिद्दीक़ी




हम ऐसे अहल-ए-नज़र को सुबूत-ए-हक़ के लिए
अगर रसूल न होते तो सुब्ह काफ़ी थी

जोश मलीहाबादी




नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे

शकील बदायुनी