आज कुछ मेहरबान है सय्याद
क्या नशेमन भी हो गया बर्बाद
असर लखनवी
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कुछ इस अंदाज़ से सय्याद ने आज़ाद किया
जो चले छुट के क़फ़स से वो गिरफ़्तार चले
मुबारक अज़ीमाबादी
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सय्याद तेरा घर मुझे जन्नत सही मगर
जन्नत से भी सिवा मुझे राहत चमन में थी
रियाज़ ख़ैराबादी
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न तड़पने की इजाज़त है न फ़रियाद की है
घुट के मर जाऊँ ये मर्ज़ी मिरे सय्याद की है
शाद लखनवी
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