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पिता शायरी | शाही शायरी

पिता

9 शेर

मैं अपने बाप के सीने से फूल चुनता हूँ
सो जब भी साँस थमी बाग़ में टहल आया

हम्माद नियाज़ी




सुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा है
जैसे बाप का पहला बोसा क़ुर्बत जैसे माओं की

हम्माद नियाज़ी




वो पेड़ जिस की छाँव में कटी थी उम्र गाँव में
मैं चूम चूम थक गया मगर ये दिल भरा नहीं

हम्माद नियाज़ी




बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़




बच्चे मेरी उँगली थामे धीरे धीरे चलते थे
फिर वो आगे दौड़ गए मैं तन्हा पीछे छूट गया

ख़ालिद महमूद




जब भी वालिद की जफ़ा याद आई
अपने दादा की ख़ता याद आई

मोहम्मद यूसुफ़ पापा




मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप
वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूँ मैं

रईस फ़रोग़