ख़बर के मोड़ पे संग-ए-निशाँ थी बे-ख़बरी
ठिकाने आए मिरे होश या ठिकाने लगे
अब्दुल अहद साज़
होश-मंदी से जहाँ बात न बनती हो 'सहर'
काम ऐसे में बहुत बे-ख़बरी आती है
अबु मोहम्मद सहर
असरार अगर समझे दुनिया की हर इक शय के
ख़ुद अपनी हक़ीक़त से ये बे-ख़बरी क्यूँ है
असद मुल्तानी
न कुछ फ़ना की ख़बर है न है बक़ा मालूम
बस एक बे-ख़बरी है सो वो भी क्या मालूम
असग़र गोंडवी
हो मोहब्बत की ख़बर कुछ तो ख़बर फिर क्यूँ हो
ये भी इक बे-ख़बरी है कि ख़बर रखते हैं
ग़ुलाम मौला क़लक़
कुछ कमाया नहीं बाज़ार-ए-ख़बर में रह कर
बंद दुक्कान करें बे-ख़बरी पेशा करें
मुईन नजमी
ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही
न तो तू रहा न तो मैं रहा जो रही सो बे-ख़बरी रही
सिराज औरंगाबादी