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वाली आसी शायरी | शाही शायरी

वाली आसी शेर

19 शेर

आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है
आज से तय है कि दुश्मन को दुआ देना है

वाली आसी




सिगरटें चाय धुआँ रात गए तक बहसें
और कोई फूल सा आँचल कहीं नम होता है

वाली आसी




ग़म के रिश्तों को कभी तोड़ न देना 'वाली'
ग़म ख़याल-ए-दिल-ए-ना-शाद बहुत करता है

वाली आसी




हम हार गए तुम जीत गए हम ने खोया तुम ने पाया
इन छोटी छोटी बातों का हम कोई ख़याल नहीं करते

वाली आसी




हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन
ऐ ख़ाक-ए-वतन क़र्ज़ अदा क्यूँ नहीं होता

वाली आसी




हमारे शहर में अब हर तरफ़ वहशत बरसती है
सो अब जंगल में अपना घर बनाना चाहते हैं हम

वाली आसी




हमें अंजाम भी मालूम है लेकिन न जाने क्यूँ
चराग़ों को हवाओं से बचाना चाहते हैं हम

वाली आसी




हमें तेरे सिवा इस दुनिया में किसी और से क्या लेना-देना
हम सब को जवाब नहीं देते हम सब से सवाल नहीं करते

वाली आसी




इस तरह रोज़ हम इक ख़त उसे लिख देते हैं
कि न काग़ज़ न सियाही न क़लम होता है

वाली आसी