चला था मैं तो समुंदर की तिश्नगी ले कर 
मिला ये कैसा सराबों का सिलसिला मुझ को
उर्फ़ी आफ़ाक़ी
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                दीवाना-वार नाचिये हँसिए गुलों के साथ 
काँटे अगर मिलें तो जिगर में चुभोइए
उर्फ़ी आफ़ाक़ी
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                मालूम है 'उर्फ़ी' जो है क़िस्मत में हमारी 
सहरा ही कोई गिर्या-ए-शबनम को मिलेगा
उर्फ़ी आफ़ाक़ी
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                वो आए जाता है कब से पर आ नहीं जाता 
वही सदा-ए-क़दम का है सिलसिला कि जो था
उर्फ़ी आफ़ाक़ी
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