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फिर क्या जो फूट फूट के ख़ल्वत में रोइए | शाही शायरी
phir kya jo phuT phuT ke KHalwat mein roiye

ग़ज़ल

फिर क्या जो फूट फूट के ख़ल्वत में रोइए

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

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फिर क्या जो फूट फूट के ख़ल्वत में रोइए
यकसर जहान ही को न जब तक डुबोइए

दीवाना-वार नाचिये हँसिए गुलों के साथ
काँटे अगर मिलें तो जिगर में चुभोइए

आँसू जहाँ भी जिस की भी आँखों में देखिए
मोती समझ के रिश्ता-ए-जाँ में पिरोइए

हर सुब्ह इक जज़ीरा-ए-नौ की तलाश में
साहिल से दूर शोरिश-ए-तूफ़ाँ के होइए