EN اردو
रवाँ दवाँ सू-ए-मंज़िल है क़ाफ़िला कि जो था | शाही शायरी
rawan dawan su-e-manzil hai qafila ki jo tha

ग़ज़ल

रवाँ दवाँ सू-ए-मंज़िल है क़ाफ़िला कि जो था

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

;

रवाँ दवाँ सू-ए-मंज़िल है क़ाफ़िला कि जो था
वही हनूज़ है यक-दश्त फ़ासला कि जो था

निशात-ए-गोश सही जल-तरंग की आवाज़
नफ़स नफ़स है इक आशोब-ए-कर्बला कि जो था

गया भी क़ाफ़िला और तुझ को है वही अब तक
ख़याल-ए-ज़ाद-ए-सफ़र फ़िक्र-ए-राहिला कि जो था

वो आए जाता है कब से पर आ नहीं जाता
वही सदा-ए-क़दम का है सिलसिला कि जो था