अपने काँधे पे लिए फिरती है एहसास का बोझ
ज़िंदगी क्या किसी मक़्तल की तमन्नाई है
तनवीर सामानी
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अपनी सूरत भी कब अपनी लगती है
आईनों में ख़ुद को देखा करता हूँ
तनवीर सामानी
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फ़र्ज़ी क़िस्सों झूटी बातों से अक्सर
सच्चाई के क़द को नापा करता हूँ
तनवीर सामानी
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फ़िक्र की आँच में पिघले तो ये मालूम हुआ
कितने पर्दों में छुपी ज़ात की सच्चाई है
तनवीर सामानी
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घरों में क़ैद हैं बस्ती के शोरफ़ा
सड़क पर हैं फ़सादी और गुंडे
तनवीर सामानी
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क्यूँ न 'तनवीर' फिर इज़हार की जुरअत कीजे
ख़ामुशी भी तो यहाँ बाइस-ए-रुस्वाई है
तनवीर सामानी
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