लम्हा-दर-लम्हा गुज़रता ही चला जाता है
वक़्त ख़ुशबू है बिखरता ही चला जाता है
तनवीर अहमद अल्वी
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पलक झपकने में कुछ ख़्वाब टूट जाते हैं
जो बुत-शिकन है वही लम्हा बुत-तराश भी था
तनवीर अहमद अल्वी
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रिवायतों को सलीबों से कर दिया आज़ाद
यही रसन तो सर-ए-दार तोड़ दी मैं ने
तनवीर अहमद अल्वी
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तेरी यादों की कहानी तो नहीं है 'तनवीर'
दिल पे दस्तक जो दिया करता है ख़ुशबू की तरह
तनवीर अहमद अल्वी
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वो दाएरों से जो बाहर न आ सके 'तनवीर'
वो रस्म-ए-गर्दिश-ए-परकार तोड़ दी मैं ने
तनवीर अहमद अल्वी
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