हाँ ऐ ग़म-ए-इश्क़ मुझ को पहचान
दिल बन के धड़क रहा हूँ कब से
शोहरत बुख़ारी
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हम-सफ़र हो तो कोई अपना-सा
चाँद के साथ चलोगे कब तक
शोहरत बुख़ारी
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हर सम्त फ़लक-बोस पहाड़ों की क़तारें
'ख़ुसरव' है न 'शीरीं' है न तेशा है न फ़रहाद
शोहरत बुख़ारी
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जब तुझे भूलना चाहा दिल ने
इक नए ग़म की सज़ा दी हम ने
शोहरत बुख़ारी
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कुछ ऐसा धुआँ है कि घुट्टी जाती हैं साँसें
इस रात के ब'अद आओगे शायद न कभी याद
शोहरत बुख़ारी
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पर्दे में ख़मोशी के बुर्के में उदासी के
शायद कोई आ जाए दरवाज़ा खुला रखना
शोहरत बुख़ारी
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ये किस अज़ाब में छोड़ा है तू ने इस दिल को
सुकून याद में तेरी न भूलने में क़रार
शोहरत बुख़ारी