आ गया था एक दिन लब पर जफ़ाओं का गिला
आज तक जब उन से मिलते हैं तो शरमाते हैं हम
शफ़ीक़ जौनपुरी
फ़रेब-ए-रौशनी में आने वालो मैं न कहता था
कि बिजली आशियाने की निगहबाँ हो नहीं सकती
शफ़ीक़ जौनपुरी
इश्क़ की इब्तिदा तो जानते हैं
इश्क़ की इंतिहा नहीं मालूम
शफ़ीक़ जौनपुरी
जला वो शम्अ कि आँधी जिसे बुझा न सके
वो नक़्श बन कि ज़माना जिसे मिटा न सके
शफ़ीक़ जौनपुरी
कमाल-ए-आशिक़ी हर शख़्स को हासिल नहीं होता
हज़ारों में कोई मजनूँ कोई फ़रहाद होता है
शफ़ीक़ जौनपुरी
कश्ती का ज़िम्मेदार फ़क़त नाख़ुदा नहीं
कश्ती में बैठने का सलीक़ा भी चाहिए
शफ़ीक़ जौनपुरी
तुझे हम दोपहर की धूप में देखेंगे ऐ ग़ुंचे
अभी शबनम के रोने पर हँसी मालूम होती है
शफ़ीक़ जौनपुरी