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सालिक लखनवी शायरी | शाही शायरी

सालिक लखनवी शेर

24 शेर

आज भी है वही मक़ाम आज भी लब पे उन का नाम
मंज़िल-ए-बे-शुमार-गाम अपने सफ़र को क्या करूँ

सालिक लखनवी




अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही
जिस जगह से उठ चुके हैं उस जगह फिर जाएँ क्या

सालिक लखनवी




बहार-ए-गुलिस्ताँ हम को न पहचाने तअज्जुब है
गुलों के रुख़ पे छिड़का है बहुत ख़ून-ए-जिगर हम ने

सालिक लखनवी




चाहा था ठोकरों में गुज़र जाए ज़िंदगी
लोगों ने संग-ए-राह समझ कर हटा दिया

सालिक लखनवी




धुआँ देता है दामान-ए-मोहब्बत
इन आँखों से कोई आँसू गिरा है

सालिक लखनवी




दिल ने सीने में कुछ क़रार लिया
जब तुझे ख़ूब सा पुकार लिया

सालिक लखनवी




जो तेरी बज़्म से उट्ठा वो इस तरह उट्ठा
किसी की आँख में आँसू किसी के दामन में

सालिक लखनवी




कही किसी से न रूदाद-ए-ज़िंदगी मैं ने
गुज़ार देने की शय थी गुज़ार दी मैं ने

सालिक लखनवी




खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं
अरे तौबा बड़ी तौबा-शिकन आवाज़ होती है

सालिक लखनवी