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साइमा इसमा शायरी | शाही शायरी

साइमा इसमा शेर

7 शेर

आज सोचा है कि ख़ुद रस्ते बनाना सीख लूँ
इस तरह तो उम्र सारी सोचती रह जाऊँगी

साइमा इसमा




ऐसा क्या अंधेर मचा है मेरे ज़ख़्म नहीं भरते
लोग तो पारा पारा हो कर जुड़ जाते हैं लम्हे में

साइमा इसमा




जाने फिर मुँह में ज़बाँ रखने का मसरफ़ क्या है
जो कहा चाहते हैं वो तो नहीं कह सकते

साइमा इसमा




कभी कभी तो अच्छा-ख़ासा चलते चलते
यूँ लगता है आगे रस्ता कोई नहीं है

साइमा इसमा




मयस्सर ख़ुद निगह-दारी की आसाइश नहीं रहती
मोहब्बत में तो पेश-ओ-पस की गुंजाइश नहीं रहती

साइमा इसमा




न-जाने कैसी निगाहों से मौत ने देखा
हुई है नींद से बेदार ज़िंदगी कि मैं हूँ

साइमा इसमा




नक़्श जब ज़ख़्म बना ज़ख़्म भी नासूर हुआ
जा के तब कोई मसीहाई पे मजबूर हुआ

साइमा इसमा